भारतीय क्रिकेट का भविष्य एक निर्णय से बदल गया, जिसके परिणामस्वरूप ICC की सदस्यता खो दी जाएगी..।

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। इंडिया वर्सेस वेस्टइंडीज 1983, के बाद भारत अब 2023 में कीर्तिमान रचने की तैयारी कर रहा है। वर्ल्ड कप के शुरूआती से टूर्नामेंट भारत ने अपनी जीत का बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है। रविवार को कप्तान रोहित शर्मा की प्लेइंग 11 ऑस्ट्रेलिया का मुकाबला करेगी। अब जब पूरा ऐतिहासिक जीत की ओर देख रहा है तो ऐतिहासिक दौड़ भी कुछ इस कदर चर्चा में है, जब भारत आईसीसी की सदस्यता खोने की कगार पर था।
 

ऐसा क्या किया था फैसला
बात तब कि है जब 1947 में भारत आजाद हुआ था। तब भारत अपना संविधान अपनाने तक ब्रिटिश राज को राजा माना हुआ था। जब कांग्रस पार्टी भारत को गणतंत्र बनना चाहती थी और ब्रिटिश राज से सभी तरह के संबंध तोड़ना चाहती थी,तब के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली और विपक्षी नेता विस्टंन नेता भारत के कॉमनवेल्थ के हिस्सा बने रहने की पेशकश की।

कहा जाता है कि कांग्रेस ने भारत के कॉमनवेल्थ का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था। उनका मानना था कि आजादी मिलने के बाद ब्रिटिश क्राउन के साथ किसी भी तरह के राजनीतिक या संवैधानिक रिश्ता नहीं रखना चाहिए।

चर्चिल ने सुझाव दिया था कि अगर भारत गणतंत्र बनता है, तो भी वह एक गणतंत्र के रूप में कॉमनवेल्थ का हिस्सा बना रह सकता है और राजा को स्वीकार कर सकता है। अब नेहरू को ये सुझाव पूरी तरह पसंद तो नहीं आया, लेकिन वह भारत को कॉमनवेल्थ में बने रहने के लिए तैयार हो गए। खास बात है कि तब वरिष्ठ नेता सरदार वल्लभभाई पटेल ने इसका विरोध भी किया था। 

ऐतिहासिक पल देखने को भी शायद नहीं मिलता
19 जुलाई 1948 को इम्पीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस की लॉर्ड्स में बैठक हुई। तब यह फैसला लिया गया कि भारत ICC का हिस्सा रहे, लेकिन सिर्फ अस्थाई आधार पर सदस्य रहेगा। भारत की ICC सदस्यता के फैसले पर 2 साल बाद फिर विचार किया जाना था। अब ICC का नियम 5 बताता है कि अगर कोई देश ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का हिस्सा नहीं होता है, तो उस देश की सदस्यता खत्म हो जाएगी।

जब ICC की 1950 में दोबारा बैठक हुई, तब भारत ने अपना संविधान अपना लिया था और वह कॉमनवेल्थ का सदस्य भी रहा, लेकिन उसकी सरकार पर ब्रिटिश राजशाही का कोई भी अधिकार नहीं था। कॉमनवेल्थ की सदस्यता से आश्वस्त होकर भारत को ICC ने स्थाई सदस्य बनाया। नेहरू के इस फैसले के बाद भारतीय के क्रिकेट के रूख ही बदल दिया। वरना आज हम आईसीसी के मेंमबर नहीं रहते और ये ऐतिहासिक पल देखने को भी शायद नहीं मिलता।

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